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Thursday, July 2, 2009

विवाह में अष्टकूट एवम गुण मिलान

विवाह में अष्टकूट एवम गुण मिलान
भारत वर्ष में विवाह से पूर्व वर एवम कन्या के जन्म नक्षत्रों के अनुसार अष्टकूट मिलान से गुण मिलाने की प्राचीन परम्परा है|
वर , कन्या तथा उनके परिजन एक -दूसरे की प्रकृति ,गुण -दोष आदि के बारे में प्रायःअनभिज्ञ होते हैं | विवाह से पूर्व दोनों पक्ष अपने दोषों को छिपाते हैं तथा गुणों को बढा -चढा कर दिखाते हैं जिसके कारण विवाह के कुछ समय बाद ही पति -पत्नी के संबंधों में तनाव आरम्भ हो जाता है |विवाहोपरांत वर एवम कन्या की परस्पर अनुकूलता हो ,दोनों की आयु दीर्घ हो ,धन -संपत्ति एवम संतान का सुख उत्तम हो इसी उद्देश्य से ऋषि -मुनिओं ने अपने ज्ञान एवम अनुसन्धान के आधार पर वर एवम कन्या की जन्म राशिः तथा जन्म नक्षत्रों के अनुसार विवाह से पूर्व अष्टकूट मिलान से गुण मिलाने की श्रेष्ठ पद्दति का विकास किया |प्रश्न -मार्ग ,विवाह वृन्दावन ,मुहूर्त गणपति ,मुहूर्त चिंतामणि प्रभृति ग्रंथों में अष्टकूट मिलान एवम इसकी उपयोगिता पर विस्तृत प्रकाश डाला गया है |
क्या है अष्टकूट ?
वर्णों वश्यं तथा तारा योनीश्च गृह मैत्रकम |
गण मैत्रं भकूटश्च नाडी चैते गुणाधिका ||
[ मुहूर्त चिंतामणि ]
1. वर्ण 2. वश्य 3, तारा 4. योनि 5. ग्रह मैत्री 6. गण 7. भकूट 8.नाडी ये आठ अष्टकूट हैं जिनका विचार मिलान में किया जाता है | क्रम संख्या के अनुसार ही इनके गुण होते हैं |जैसे वर्ण का क्रम एक है तो गुण भी एक होगा ,योनि का क्रम चार है तो गुण भी चार ही होंगे |इस प्रकार क्रमानुसार योग करने पर अष्टकूटोँ के कुल गुण 1+2+3+4+5+6+7+8=36 गुण होते हैं |
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1. वर्ण कूट


वर्णजन्म योनि

ब्राह्मणकर्क ,वृश्चिक ,मीन
क्षत्रियमेष ,सिंह ,धनु
वैश्यवृष,कन्या मकर
शूद्रमिथुन ,तुला कुम्भ



वर का वर्ण कन्या से उत्तम होने पर एक गुण अन्यथा शून्य गुण मिलता है |


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2. वश्य कूट

संज्ञाराशिः
नरमिथुन ,कन्या ,तुला एवम धनु 15 अंश तक
चतुष्पदमेष ,वृष ,सिंह ,धनु के अंतिम 15 अंश ,मकर 15 अंश तक
जलचर कुम्भ ,मीन ,मकर के अंतिम 15 अंश
कीटकर्क ,वृश्चिक


सिंह राशिः को छोड़ कर सभी राशियां नर के वश में होती हैं| वृश्चिक को छोड़ कर शेष राशियां सिंह राशिः के वश में हैं |समान वश्य में 2 गुण ,एक वश्य व दूसरा शत्रु हो तो 1 गुण ,एक वश्य व दूसरा भक्ष्य हो तो 1/2 गुण प्राप्त होते हैं |
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3. तारा कूट
कन्या के जन्म नक्षत्र से वर के जन्म नक्षत्र तक तथा वर के जन्म नक्षत्र से कन्या के जन्म नक्षत्र तक गिनें |दोनों संख्याओं को अलग -अलग 9 से भाग दें |शेष 3,5,7 हो तो तारा अशुभ अन्यथा शुभ होगी |दोनों तारा अशुभ हो तो 0 गुण , दोनों शुभ हों तो 2 गुण ,एक अशुभ व दूसरी शुभ हों तो 1 गुण होता है |

4.योनि कूट



वैर
वैर
वैर
वैर
वैर
वैर
वैर

योनी


नक्षत्र
नक्षत्र


अश्व
महिष
सिंह
हाथी
मेढा
वानर
नेवला
सर्प
मृग
श्वान
बिल्ली
मूषक
व्याघ्र
गौ
अश्वनी
शतभिषा
स्वाति
हस्त
धनिष्ठा
पू0भा0
भरणी
रेवती
पूष्य
कृतिका
श्रवण पू०षा उ0षा
अभिजित
मृगशिरा रोहिणी

ज्येष्ठा
अनुराधा
मूल
आर्द्रा
पुनर्वसु अश्लेशा
मघा
पू०फ़ा0
विशाखा चित्रा

उ०भा
उ०फ़ा0



एक ही योनि हो या अधि मित्र योनि हो तो 4 गुण , मित्र हो तो 3 गुण ,सम हो तो 2 गुण ,वैर में 1 गुण तथा महा वैर में 0 गुण मिलता है |
5. ग्रह मैत्री कूट


ग्रह--->
सूर्य
चन्द्र
मंगल
बुध
गुरु
शुक्र
शनि
मित्र
चन्द्र मंगलगुरु सूर्य बुध चन्द्र सूर्य गुरु सूर्य शुक्र चन्द्र सूर्य मंगल बुध शनि बुध शुक्र
सम
बुध मंगल गुरु शुक्र शनि शुक्र शनि मंगल गुरु शनि शनि मंगल गुरु गुरु
शत्रु
शुक्र शनि
बुध चन्द्र बुध शुक्र चन्द्र सूर्य चन्द्र सूर्य मंगल


वर -कन्या की एक ही राशिः हो या परस्पर मैत्री हो तो 5 गुण ,एक मित्र व एक सम हो तो 4 गुण ,दोनों सम हों तो 3 गुण ,एक मित्र व एक शत्रु हो तो 1 गुण ,एक सम व एक शत्रु हो तो 1/2 गुण ,दोनों शत्रु हों तो 0 गुण मिलता है |


6.गण

देव गण
मानव गण
राक्षस गण
अश्वनी
भरणी
कृतिका
मृगशिरा
रोहिणी
आश्लेषा
पुनर्वसु
आर्द्रा
मघा
पुष्य
पूर्वा ० फा 0
चित्रा
हस्त
उत्तरा ० फा 0
विशाखा
स्वाति
पूर्वाषाढ़
ज्येष्ठा
अनुराधा

उत्तरा षाढ़
मूल
श्रवण
पूर्वा ० भा 0
धनिष्ठा
रेवती
उत्तरा ० भा o
शतभिषा


वर ,कन्या का गण समान हो तो 6 गुण, वर का देव तथा कन्या का मानव गण हो तो 6 गुण , कन्या का देव तथा वर का मानव गण हो तो 5 गुण ,कन्या का देव तथा वर का राक्षस गण हो तो 1 गुण ,कन्या का राक्षस तथा वर का देव गण हो या एक का मानव व दूसरे का राक्षस गण हो तो 0 गुण मिलता है |

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7 भकूट

वर एवम कन्या की जन्म राशि एक -दूसरे से 6-8, 5-9, 2-12 वें हो तो भकूट दोष होता है |
6-8 अर्थात षडाष्टक दोष से रोग ,कलह या वियोग , 5-9 अर्थात नव-पंचम से अन्पत्यता , 2-12 अर्थात द्वि -द्वादश दोष से हानि एवम दरिद्रता होती है |भकूट दोष होने पर 0 गुण अन्यथा 7 गुण मिलते हैं |

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8. नाडी कूट
आदि नाडी
अश्वनी

आर्द्रा

पुनर्वसु

उ0फा0
हस्त

ज्येष्ठा
मूल
शतभिषा
पू०भा0
मध्य नाडी
भरणी
मृगशिरा
पुष्य
पू०फ़ा0
चित्रा
अनुराधा
पू0षा0
धनिष्ठा उ०भा0
अन्त्य नाडी
कृतिका
रोहिणी
आश्लेषा
मघा
स्वाति
विशाखा
उ० षा०
श्रवणरेवती
वर कन्या का जन्म नक्षत्र एक ही नाडी में हो तो अत्यन्त अशुभ समझा जाता है तथा शुन्य गुण मिलता है । अन्यथा आठ गुण प्राप्त होते है ।
दोनों का जन्म नक्षत्र आदि नाडी मे हो तो वियोग , मध्य में हो तो हानि , तथा अन्त्य नाडी मे हो तो मृत्यु अथवा दारुण कष्ट सहना पड़ता है ।
अष्टकूट दोषों का परिहार
यह बड़े आश्चर्य का विषय है कि वर एवम कन्या के जन्म नक्षत्र का मिलान करते हुए सभी ज्योतिषी अष्टकूट दोषों का विचार तो करते हैं पर उनके परिहारों को महत्त्व प्रदान नहीं करते |सभी मेलापक एवम मुहूर्त ग्रंथों में अष्टकूट दोषों के साथ ही उनके परिहारों का वर्णन किया गया है | परिहार उपलब्ध होने पर दोष कि निवृति मान कर उसके आधे गुण ग्रहण करने का शास्त्र उपदेश देते हैं |कुल 36 गुणों में से 18 से 21 तक गुण मिलने पर मिलान मध्यम तथा इस से अधिक होने पर उत्तरोतर शुभ मिलान होता है |18 से कम गुण मिलने पर विवाह सम्बन्ध नहीं करना चाहिए |अष्टकूट दोषों का परिहार निम्नलिखित प्रकार से वर्णित है :
अष्टकूट
परिहार
वर्ण
राशियों के स्वामियों या नवांशेशों कि मैत्री या एकता हो
वश्य
राशियों के स्वामियों या नवांशेशों कि मैत्री या एकता हो
तारा
राशियों के स्वामियों या नवांशेशों कि मैत्री या एकता हो
योनि
राशियों के स्वामियों या नवांशेशों कि मैत्री या एकता हो
राशिः मैत्री
1 राशियों के नवांशेशों कि मैत्रीया एकता हो |
2 भकूट दोष न हो |
|गण
1 राशियों के स्वामियों या नवांशेशों कि मैत्री या एकता हो | 2 भकूट दोष न हो |

भकूट
राशियों के स्वामियों या नवांशेशों कि मैत्री या एकता हो
नाडी
1. दोनों कि राशिः एक तथानक्षत्रअलग-अलग हों |
2. दोनों के नक्षत्र एक तथा राशि अलग -अलग हो |
3. दोनों के नक्षत्रों में चरण वेध न हो अर्थात
दोनों के नक्षत्रों के चरण 1-4 या 2-3 न हो क्योंकि इनमें परस्पर वेध होता है |

Friday, June 12, 2009

मांगलिक दोष में भ्रान्तियों का निवारण

मांगलिक दोष में भ्रान्तियों का निवारण
विवाह के समय वर एवम कन्या की जन्म कुंडली मिलान करते हुए अष्टकूट के साथ -साथ मांगलिक दोष पर भी विचार किया जाता है |परन्तु खेद है कि अधिकांश दैवज्ञ इस महत्व पूर्ण विषय पर विचार करते हुए कुछ मुहूर्त ग्रंथों के अप्रमाणिक एवम तर्क हीन वाक्यों का आधार ले कर त्रुटि पूर्ण मिलान करते हैं तथा फलित शास्त्र के महत्व पूर्ण सूत्रों कि उपेक्षा करते हैं|ऐसा करते हुऐ ये दैवज्ञ शास्त्र एवम समाज दोनों को हानि पहुंचाते हैं |इस प्रकार के त्रुटि पूर्ण विवाह सफल नहीं हो पाते |
क्या है मांगलिक दोष ?
जन्म कुंडली






जन्म कुंडली में 1,4,7,8,12 वें भावः में यदि मंगल स्थित हो तो वर अथवा कन्या को मंगली कहा जाता है
तथा उसका विवाह मंगली वर /कन्या से करना शुभ समझा जाता है |मंगल ग्रह को ज्योतिष ग्रंथों में रक्त प्रिय एवम हिंसा व विवाद का कारक कहा गया है |सातवाँ भाव जीवन साथी एवम गृहस्थ सुख का है |इन भावों में स्थित मंगल अपनी दृष्टि या स्थिति से सप्तम भाव अर्थात गृहस्थ सुख को हानि पहुँचाता है |दैवज्ञॉ की एक
बड़ी संख्या जन्म कुंडली में उपरोक्त स्थानों पर मंगल को देख कर वर या कन्या को तत्काल मंगली घोषित
कर देती है फ़िर चाहे मंगल नीच राशिः में हो या उच्च में ,मित्र राशिः में हो या शत्रु में | मंगल दोष के परिहार को या तो अनदेखा किया जाता है या शास्त्रीय नियमों की अवहेलना करने वाले परिहार वाक्यों को लागू करके
त्रुटि युक्त मिलान कर दिया जाता है |
क्या कहते हैं ज्योतिष के शास्त्रीय मूलभूत नियम ?
फलित ज्योतिष के सर्वमान्य ग्रंथों के अनुसार जो ग्रह अपनी उच्च ,मूल त्रिकोण ,स्व ,मित्र राशिः --नवांश में स्थित ,वर्गोत्तम ,षड्बली ,शुभ ग्रहों से युक्त -दृष्ट हो वह सदैव शुभकारक होता है |इसी प्रकार नीचस्थ ,अस्त ,शत्रु राशिस्थ ,पापयुक्त ,पाप दृष्ट ,षड्बल विहीन ग्रह अशुभ कारक होता है |

नीचस्थो रिपु राशिस्थ खेटो भावविनाशकः|
मूल स्व तुंग मित्रस्थो भाव वृद्धि करो भवेत् ||
[ जातक - पारिजात ]


नीचारिगो भाव विनाश कृत्खगःसमः समर्क्षे सखि भे त्रिकोण भे |
स्वोच्चे स्व भे भावचय प्रदः फल दुःस्थेस्व सत्सत्सु विलोम ||
[ज्योतिस्तत्व ]
पाप ग्रहभी यदि स्व , उच्च , मित्र राशि --नवांश ,वर्गोत्तम ,शुभ युक्त , शुभ दृष्ट हों तो शुभ कारक होते हैं ,
देखिये :
स्वीय तुंग सखि सदभ संस्थित पामरोअपि यदि सत्फलम व्रजेत |
[ भाव मंजरी ]
पाप ग्रहा बलयुताः शुभ वर्ग संस्था सौम्या भवन्ति शुभ वर्गग सोम्य दृष्टाः|
[जातका देश मार्ग ]

उपरोक्त सन्दर्भों से यह स्पष्ट है कि जन्म कुंडली के 1,4,7,8,12,वें भाव में स्थित मंगल यदि स्व ,उच्च मित्र आदि राशि -नवांश का ,वर्गोत्तम ,षड्बली हो तो मांगलिक दोष नहीं होगा जब कि अधिकाँश दैवज्ञ उस वर /कन्या को मांगलिक घोषित करके कितना अनर्थ करते हैं | करते हैं | प्राचीन ज्योतिष ग्रंथों एवम फलित सूत्रों क्र अनुसार जन्म कुंडली के 1,4,7,8,12,वें भाव में स्थित मंगल भी निम्न लिखित परिस्तिथियों में दोष कारक नहीं होगा :-
1.. यदि मंगल इन भावों में स्व ,उच्च ,मित्र राशिः --नवांश का हो |
2. यदि मंगल इन भावों में वर्गोत्तम नवांश का हो |
3..यदि इन भावों में स्थित मंगल पर बलवान शुभ ग्रहों कि पूर्ण दृष्टि हो |
| एक और गंभीर गल्ती जो प्रायः आजकल अल्प ज्ञानी ज्योतिषियों द्वारा की जा रही है वह है ,मांगलिक दोष का विचार भाव कुंडली से न करना |चलित कुंडली में संधि स्थान पर स्थित मंगल का भाव फल शून्य होगा | कभी -कभी भाव मध्य स्पष्ट एवम मंगल स्पष्ट का अंतर 15 अंश से अधिक होने पर मंगल अगले या पिछले भाव का फल करने के कारण दोष कारक नहीं रहता
सप्तम भाव का स्वामी बलवान हो तथा अपने भाव को पूर्ण दृष्टि से देख रहा हो तो मांगलिक दोष का परिहार हो जाता है |
क्या 28 वें वर्ष के बाद मांगलिक दोष नहीं रहता ?
यह दोष पूर्ण अवधारणा बहुत प्रचलित है |मंगल 28 वें वर्ष में अपना शुभाशुभ फल प्रदान करता है यह सत्य है किन्तु अपनी दशा ;अन्तर्दशा ,प्रत्यंतर दशा या गोचर में कभी भी अपना अशुभ फल प्रगट कर सकता है |अतः 28 वें वर्ष के बाद मांगलिक दोष की निवृति नहीं होती |
क्या शनि या राहु से युक्त मंगल होने पर मांगलिक दोष नहीं रहता ?
कुछ मुहूर्त ग्रंथों मैं ऐसे वाक्य मिलते हैं कि शनि या राहु से युक्त मंगल होने पर मांगलिक दोष नहीं रहता किन्तु ये वाक्य फलित ज्योतिष के शास्त्रीय नियमों के विरूद्व हैं | यह सर्वमान्य फलित ज्योतिष सिद्धांत है कि पाप ग्रह कि युति किसी ग्रह के पाप फल मैं वृद्धि करती है उसका दोष दूर नहीं करती | देखिये : नीचादी दुः स्थगे भूमि सुते बल विवर्जिते |
पाप युक्ते पाप दृष्टे सा दशा नेष्ट दायिका ||
[ बृहत् पाराशर ]

नीच शत्रु गृहम प्राप्ताः शत्रु निम्नांश सूर्य गाः |
वि वर्णाः पाप संबंधा दशां कुर्मुर शोभनाम ||
[सारावली]
बृहत् पाराशर के अनुसारविकलः पाप संयुतः अर्थात पापी ग्रह से युक्त ग्रह विकल अवस्था का होगा तथा दोष कारक होगा अतः स्पष्ट है की शनि या राहु की युति से मांगलिक दोष की निवृति नहीं अपितु वृद्धि होगी क्योंकि ये दोनों ग्रह पापी हैं और मंगल के अशुभ फल में वृद्धि करेंगे |

उपरोक्त तथ्यों से यही निष्कर्ष निकलता है कि मांगलिक दोष का निर्णय वर तथा कन्या कि जन्म कुंडलियों का सावधानी पूर्वक अनुशीलन करके करना चाहिए तथा जल्दबाजी से किसी परिणाम पर नहीं पहुंचना चाहिए | ऐसा करके ही हम समाज व शास्त्र का हित कर सकते हैं |

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