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Monday, June 13, 2011

सूर्य पुराणों एवम ज्योतिष शास्त्र में

                  सूर्य  पुराणों एवम ज्योतिष शास्त्र में   
                                    विश्लेष्णात्मक अध्ययन 
वेदों में सूर्य को जगत की आत्मा कहा गया है |.समस्त चराचर जगत की आत्मा सूर्य ही है |सूर्य से ही इस पृथ्वी पर जीवन है| वैदिक काल से ही भारत में सूर्योपासना का प्रचलन रहा है| वेदों की   ऋचाओं में अनेक स्थानों पर  सूर्य देव की स्तुति की गई  है |  पुराणों में सूर्य की उत्पत्ति ,प्रभाव ,स्तुति मन्त्र इत्यादि का वर्णन है | ज्योतिष शास्त्र में नव ग्रहों में सूर्य को राजा का पद प्राप्त है | प्रस्तुत लेख में सूर्य का पुराणों एवम ज्योतिष साहित्य के आधार पर तुलनात्मक अध्ययन किया गया है |
सूर्य देव की उत्पत्ति
मार्कंडेय पुराण के अनुसार  पहले यह सम्पूर्ण जगत प्रकाश रहित था | उस समय कमलयोनि ब्रह्मा  जी प्रगट हुए | उनके मुख से प्रथम शब्द ॐ निकला जो सूर्य का तेज रुपी सूक्ष्म रूप था | तत्पश्चात ब्रह्मा  जी के चार मुखों से चार वेद प्रगट हुए जो  ॐ के तेज में एकाकार हो गये |
यह वैदिक तेज ही  आदित्य है जो विश्व का अविनाशी कारण है|  ये वेद स्वरूप सूर्य ही श्रृष्टि की उत्पत्ति ,पालन व संहार के  कारण हैं | ब्रह्मा  जी की प्रार्थना पर सूर्य ने अपने महातेज को समेट कर स्वल्प तेज को ही धारण किया |
 सृष्टि रचना के समय ब्रह्मा  जी के पुत्र मरीचि हुए जिनके पुत्र  ऋषि कश्यप का विवाह अदिति से हुआ | अदिति ने घोर तप द्वारा भगवान् सूर्य को प्रसन्न  किया जिन्होंने उसकी इच्छा पूर्ति के लिए सुषुम्ना नाम की किरण से उसके गर्भ में प्रवेश  किया | गर्भावस्था में भी अदिति चान्द्रायण जैसे कठिन व्रतों का पालन करती थी | ऋषि राज कश्यप ने क्रोधित हो कर अदिति से कहा - " तुम इस तरह उपवास रख कर गर्भस्थ शिशु को क्यों मरना चाहती हो | " यह सुन कर देवी अदिति ने  गर्भ के बालक को उदर से बाहर कर दिया जो अपने तेज से प्रज्वल्लित हो रहा था |भगवान् सूर्य शिशु रूप में उस गर्भ से प्रगट हुए | अदिति को मारिचम - अन्डम कहा जाने के कारण यह बालक मार्तंड नाम से प्रसिद्ध हुआ | ब्रह्म  पुराण  में अदिति के गर्भ से जन्मे सूर्य के अंश को  विवस्वान कहा गया है | 
सूर्य का स्वरूप एवम प्रकृति
मत्स्य पुराण के अनुसार सूर्य  कमलासन पर विराजमान हैं | उनकी कांति कमल के भीतरी भाग जैसी है | वे सात अश्वों के रथ पर आरूढ़   हैं जो सात ही रज्जुओं से बंधे हुए हैं |
ब्रह्म पुराण के अनुसार भी  सूर्य  कमलासन पर विराजमान हैं | उनके नेत्र पीले हैं तथा शरीर का वर्ण लाल है | उनका रूप तेजस्वी है तथा वस्त्र कमल के समान लाल हैं |
ज्योतिष शास्त्र के प्रसिद्ध फलित ग्रंथों के अनुसार सूर्य पित्त प्रधान ,चतुरस्र देह ,अल्पकेशी, पिंगल दृष्टि ,लाल वर्ण ,तीक्ष्ण ,शूर एवम अस्थि प्रधान है |
सूर्य  का  रथ एवम गति 
 देवी भागवत ,मत्स्य ,नारद ,ब्रह्माण्ड एवम गरुड़ आदि पुराणों   के अनुसार  सूर्य के रथ में एक चक्र है जिसकी तीन पूर्वान्ह ,मध्यान्ह व अपरान्ह रुपी नाभियाँ हैं |परिवत्सरादिक पांच अरे हैं | छः वसंत आदि ऋतु रुपी नेमियाँ हैं | अक्षय स्वरूपी संवत्सर  से युक्त उस चक्र में सम्पूर्ण कालचक्र स्थित है | दिन को रथ की नाभि कहा गया है | वर्ष उसके अरे हैं |चारों युग इसके धुरे के छोर हैं |पवन  वेगी अश्वों से जुते इसी रथ पर सूर्य देव आकाश मंडल में भ्रमण करते हैं | राशि चक्र में सिंह राशि पर इनका अधिकार है |
          कुम्हार के चाक के सिरे पर घूमते हुए जीव के समान भ्रमण करता  हुआ सूर्य पृथ्वी  के तीस भागों का एक दिन रात में अतिक्रमण करता है |उत्तरायण के आरम्भ में मकर राशि में प्रवेश  करता हैतो इसकी गति मंद हो जाती है | कर्क राशि में प्रवेश करने पर ये दक्षिणायन हो जाते हैं | जब सूर्य मेष एवम तुला राशि में होते हैं तो उस समय दिन एवम रात्रि का मान समान होता है | वृष आदि पांच राशियों में सूर्य भ्रमण के समय दिनमान में वृद्धि तथा रात्रिमान में कमी एवम वृश्चिक आदि पांच राशियों में  सूर्य भ्रमण के समय दिनमान  में कमी तथा रात्रिमान में वृद्धि होती है |
              उदय से ले कर सूर्य की गति के तीन मुहूर्त के समय को प्रातःकाल कहते हैं | इस से आगे के तीन तीन मुहूर्त का समय क्रमशः संगव  ,मध्यान्ह ,अपरान्ह ,एवम सांयकाल होता है |सूर्य की दो घडी की गति का परिमाण 3150000  योजन से अधिक है | उत्तर दिशा में सूर्य मार्ग को नागवीथि तथा दक्षिण दिशा में  अजवीथि  कहा जाता है | सम्पूर्ण दिन रात्रि में तीस मुहूर्त होते हैं | शरद व वसंत ऋतु  में जब सूर्य तुला व मेष राशि में संचार करता है उसे विषुव काल कहते हैं | इस काल में 15 मुहूर्त दिन में तथा 15 मुहूर्त रात में होने के कारण दिन व रात का मान समान होता है | विषुव काल को  अति पवित्र कहा गया है | इस समय देवता ,ब्राह्मण एवम पितृगण  के निमित्त  किया गया दान अक्षय होता है |  विष्णु पुराण के अनुसार सूर्य ही समस्त  वृष्टियों का मूल कारण है | सूर्य समस्त लोकों के समुद्रों ,सरोवरों ,नदियों व स्थावर -जंगम  प्राणियों में स्थित जल को अपनी किरणों द्वारा खींचते रहते हैं | यह जल मेघों में प्रवर्तित  होता रहता है | मेघ वायु द्वारा प्रेरित हो कर पृथ्वी पर जल की वृष्टि करते हैं जिस से अन्न की उत्पत्ति होती है और अन्न से ही सम्पूर्ण जगत का पोषण होता है |  
सूर्य का कारकत्व  
 पुराणों के अनुसार सभी प्राणियों की आत्मा सूर्य ही है | इन्द्रियों में नेत्रों का स्वामी सूर्य है | नेत्रों में कष्ट होने पर सूर्य स्तोत्र का पाठ करना कहा गया है |
ज्योतिष  शास्त्र में  सूर्य को आत्मा ,नेत्र ,पिता ,प्रताप ,आरोग्यता ,लाल  रंग के पदार्थ  ,अस्थि ,सिर ,हृदय ,उदर,महत्वकांक्षा ,राजनीति ,राजा इत्यादि का कारक कहा गया है | 
ज्योतिष शास्त्र में सूर्य  
ज्योतिष शास्त्र के अनुसार सूर्य आकाश में स्थित क्रान्ति वृत्त के राशि चक्र में एक दिन में लगभग एक अंश की गति से भ्रमण करता है | यह सदैव मार्गी होता है | यह सिंह राशि का स्वामी है जिसमें 1-20 अंश तक मूल त्रिकोण तथा 21-30 अंश तक स्व राशि में समझा जाता है | सूर्य मेष राशि के 1 अंश से 9 अंश तक उच्च तथा 10 अंश पर परम उच्च होता है | तुला राशि में 1-9 अंशों तक नीच तथा 10 अंश पर परम नीच का होता है | सूर्य अपने स्थान से सातवें स्थान को पूर्ण दृष्टि से देखता है | चन्द्र ,मंगल गुरु  सूर्य के मित्र ,बुध सम , शनि व शुक्र शत्रु हैं | सूर्य द्वारा एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश को संक्रांति कहा जाता है | वर्ष में बारह संक्रांतियां होती हैं | सूर्य संक्रांति से 16 घटी पहले तथा 16 घटी बाद में पुण्य काल  होता है जो दान ,जाप ,उपासना, होम इत्यादि धार्मिक कार्यों के लिए उत्तम कहा गया है |     
              सूर्य का निसर्ग बल नव ग्रहों  में सबसे अधिक है | उत्तरायण में ,अपने वार- होरा -नवांश में ,स्व -मित्र-मूल त्रिकोण  -उच्च राशि में , वर्गोत्तम नवांश में, दिन के मध्य में तथा लग्न से दशम स्थान पर  सूर्य सदा बली एवम शुभ फलदायक होता है |  सूर्य से पहले स्थित ग्रह अधोमुखी हो कर अशुभ तथा बाद में उर्ध्वमुखी हो कर शुभ फल देने वाले होते हैं |     
 सूर्य और रोग 
जन्म कुंडली में सूर्य यदि नीच -शत्रु राशिस्थ ,पाप ग्रहों से युक्त या दृष्ट हो कर त्रिक में हो तो नेत्र कष्ट ,हृदय रोग ,सिर में  पीड़ा या रोग ,पित्त जनित विकार ,अस्थि रोग ,ज्वर इत्यादि रोग प्रदान करता है |  
सूर्य का राशि फल  
जन्म कुंडली में मेष आदि राशियों में सूर्य का सामान्य  फल इस प्रकार है --------
मेष  सूर्य की उच्च राशि है | इसमें स्थित होने पर जातक धनी,साहसी ,उग्र ,ऊँचे चरित्र का अपने कार्यों से प्रतिष्ठा पाने वाला , मजबूत  अस्थियों   वाला तथा  कला  में रूचि रखने वाला होता है |
वृष  राशि में स्थित होने पर जातक सुगंध प्रेमी ,गीत -संगीत को जानने वाला ,मुख -नेत्र रोग से पीड़ित ,व्यापारी एवम स्त्रियों से शत्रुता रखने वाला होगा |
मिथुन  राशि में स्थित होने पर जातक ज्योतिष  शास्त्र का ज्ञाता ,धनवान ,मेधावी ,विज्ञान में निपुण ,विनीत , उदार तथा बंधु प्रिय  होता है |
कर्क  राशि में स्थित होने पर जातक  मीठी वाणी का ,चतुराई से बोलने वाला ,सुरूप , दूसरों के कार्य करने वाला तथा यात्रा में क्लेश उठाने वाला होता है |
 सिंह राशि में स्थित होने पर जातक  शत्रु हन्ता ,वन पर्वत में भ्रमण में रूचि रखने वाला ,तेजस्वी ,धनी ,विख्यात ,स्थिर विचारों का ,गंभीर तथा क्रोधी होता है |

  कन्या राशि में स्थित होने पर जातक  दुबला ,अल्प बली, सरल ,लज्जा युक्त ,मेधावी ,तथा कोमल स्वभाव का होता है |

तुला राशि में स्थित होने पर जातक  पराजित ,द्वेषी ,निर्धन ,परकार्य रत ,मलिन ,ढीठ ,निम्न कार्य करने वाला ,मद्य विक्रेता ,रोगी ,व्यसनों  से पीड़ित होता है |
वृश्चिक राशि में स्थित होने पर जातक  शत्रुजित,राजा की कृपा से सुख प्राप्त करने वाला ,वैदिक धर्म का आचरण करने वाला ,स्त्री को प्रिय ,धनी ,कठोर स्वभाव का तथा शस्त्र चलाने में निपुण  होगा |   
धनु राशि में स्थित होने पर जातक  राजा का कृपा पात्र  ,पंडित ,व्यवहार कुशल ,चतुर ,आयुर्वेद या शिल्प विद्या का ज्ञाता ,धनवान तथा बंधु हितकारी होगा |
मकर राशि में स्थित होने पर जातक  विपत्तियों से घिरा हुआ ,अशुभ कार्य करने वाला ,,सज्जनों का शत्रु ,लोभी ,चच्चल ,अधिक भोजन करने वाला तथा बंधु हीन होगा |
 कुम्भ राशि में स्थित होने पर जातक स्थिर द्रोही ,कोपी ,विरोध करने को तत्पर ,व्ययी ,अनिश्चित ,पापी ,कृतघ्न ,दूषित कार्य करने वाला ,भाग्य हीन ,हृदय रोगी ,अविश्वसनीय मित्र ,चुगली करने वाला तथा दुखीहोगा |मीन राशि में स्थित होने पर जातक पुण्यवान ,गुरु व मित्र में प्रीति करने वाला ,प्रसन्न चित्त ,धार्मिक ,स्त्री से पूजित ,जलोत्पन्न पदार्थों का व्यापार करने वाला होगा |
दशा फल एवम समय  
सूर्य जन्म कुंडली में अपनी स्थिति के अनुसार अपना  शुभाशुभ फल अपनी दशाओं में प्रदान करता है | सर्व प्रचलित विंशोत्तरी दशा के अनुसार सूर्य की महादशा 6 वर्ष की होती है |दूसरे ग्रहों की महादशाओं में अपनी अन्तर्दशा आने पर भी सूर्य का शुभाशुभ फल मिलता है | जन्म कुंडली में सूर्य शुभ फल दायक सिध्ध होता हो तो उसकी  दशा  में यश वृध्धि ,स्वर्ण लाभ ,पिता एवम राजा से लाभ ,उद्योगशीलता ,राज सम्मान ,प्राकृतिक स्थलों पर भ्रमण होगा |यदि  अशुभ  फल देने वाला हो तो ज्वर ,सिर पीड़ा ,नेत्र कष्ट ,पित्त की अधिकता , क्रोध ,पिता को कष्ट ,राजा से हानि ,धन व यश की हानि ,हृदय रोग ,एवम कलह क्लेश होगा | 22-24 वर्ष की अवधि में भी सूर्य का शुभाशुभ फल मिलता है |
गोचर  में  सूर्य 
जन्मकालीन चन्द्र से 3,6,10,11 वें स्थान पर गोचर वश जाने पर सूर्य शुभ फल प्रदान करता है | क्रमानुसार 9,12,4,5 वां इनका  वेध स्थान है जहां किसी ग्रह के स्थित होने पर सूर्य का शुभ फल नहीं मिलता | सूर्याष्टक वर्ग में जिन राशियों में चार से अधिक शुभ बिंदु प्राप्त हैं उनमें गोचर वश जाने पर सूर्य का शुभ फल प्राप्त होगा | यह गोचर प्रभाव जानने  की  अधिक सूक्ष्म विधि है |
रत्न एवम धातु 
सूर्य की धातु ताम्बा है | माणिक्य सूर्य का रत्न  तथा  लालडी उपरत्न है |  सूर्य यदि  अशुभ  फल देने वाला हो तो ताम्बे या सोने में माणिक्य या लालडी  सूर्य के नक्षत्रों --कृतिका,उत्तरा फाल्गुनी व उत्तराषाढ़ में जडवा कर    रविवार को धारण करना चाहिए |    
 दान ,जाप व व्रत 
रविवार को सूर्योदय के बाद गेंहु,गुड ,केसर ,लाल चन्दन ,लाल वस्त्र ,ताम्बा, सोना  तथा लाल रंग के फल दान करने चाहियें | सूर्य के बीज मन्त्र ॐ  ह्रां ह्रीं ह्रों सः सूर्याय नमः  के 7000 की संख्या में जाप करने  से भी सूर्य कृत अरिष्टों की निवृति हो जाती है | गायत्री जाप से , रविवार के मीठे व्रत रखने से तथा ताम्बे के पात्र में जल में  लाल चन्दन ,लाल पुष्प ड़ाल कर नित्य सूर्य को अर्घ्य  देने पर भी शुभ  फल प्राप्त होता है |  विधि पूर्वक बेल पत्र की जड़ को रविवार में लाल डोरे में धारण करने से भी सूर्य प्रसन्न हो कर शुभ फल दायक हो जाते हैं  |           

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